(बीके सिंह) सीतापुर। इच्छाशक्ति मजबूत हो तो व्यक्ति की उम्र मायने नहीं रखती, वह गंभीर से गंभीर बीमारी से मुक्त होकर एक बार फिर सामान्य जीवन जी सकता है। यही नहीं, बीमारी के अनुभव कभी-कभी जीवन को एक नई राह दिखाकर उसे और अधिक अर्थपूर्ण बना देते हैं। ऐसा ही मिश्रिख ब्लाक के ज्ञान सागर गांव के निवारी श्रीकृष्ण के साथ हुआ। एक साल पहले फेफड़े की टीबी से ग्रसित हुए 52 वर्षीय श्रीकृष्ण न केवल दृढ इच्छाशक्ति और सकारात्मक सोच के साथ नियमित इलाज लेकर टीबी मुक्त हुए, बल्कि आज जांच-इलाज में दूसरे मरीजों की मदद भी कर रहे हैं।
टीबी चैंपियन श्रीकृष्ण बताते हैं कि वर्ष 2022 के जनवरी माह में खांसी और बलगम आने की समस्या से मैं 15 दिनों से अधिक समय से परेशान रहा, खेतों में कुछ ही समय काम कर पाता था। मुझे थकान लगने लगती और मैं हांफने लगता। आखिरकार एक दिन मैं स्वयं मिश्रिख सीएचसी पहुंचा, जहां डाक्टरों ने बलगम की जांच और एक्स-रे कराया। जांच में टीबी की पुष्टि होने के बाद डाक्टर की सलाह पर लगातार नियमित रूप से दवा लेना शुरू कर दिया। यह जीवन का बेहद कठिन दौर था। लोगों ने टीबी की बीमारी के नाम पर मदद करने से मुंह मोड़ लिया, अपने भी करीब आने और बातचीत करने से हिचकने लगे। पर इलाज जारी रखा और नतीजा यह रहा कि मैं छह माह में ही पूरी तरह स्वस्थ हो गया।
बीमारी के दौरान सामाजिक भेदभाव का अनुभव करने के बाद मैंने संकल्प लिया कि इस बीमारी से पीड़ित दूसरे मरीजों का मनोबल बढ़ाने और उन्हें संबल देने का काम करूंगा। सितम्बर 2022 से टीबी चैंपियन के रूप में समुदाय को टीबी मुक्त बनाने में सहयोग दे रहा हूं।
श्रीकृष्ण बताते हैं कि अब तक लगातार अपने गांव सहित आसपास के गांवों के लोगों को भी टीबी के प्रति जागरूक करने का काम कर रहा हूं। जब मुझे टीबी रोग हुआ था, तो मुझे सीएचसी से निक्षय पोषण योजना की जानकारी हुई और मैंने इसका लाभ भी लिया। इस योजना के तहत उपचार की अवधि में छह माह तक नियमित रूप से पांच सौ रुपए सरकार द्वारा मेरे बैंक खाते में भेजे जाते रहे। मैंने इस धनराशि का प्रयोग पौष्टिक खाने-पीने पर खर्च किया। जिससे मुझे शारीरिक कमजोरी नहीं महसूस हुई। श्रीकृष्ण के अनुसार वे अब तक टीबी से मिलते-जुलते लक्षण वाले एक दर्जन लोगों को सीएचसी पर ले जाकर जांच करा चुके हैं, जिनमें से एक व्यक्ति टीबी धनात्मक पाया गया।
जिसका निक्षय पोषण पोर्टल पर पंजीकरण भी कराने में मदद की।
क्या कहते हैं सीएचसी अधीक्षक
मिश्रिख सीएचसी के चिकित्सा अधीक्षक डा. आशीष सिंह का कहना है कि टीबी की जांच इलाज में देरी, उपचार में रुकावट और खराब परिणामों के लिए जिम्मेदार बनती है। शीघ्र जांच और उपचार के बेहतर परिणाम के लिए यह जरूरी है कि स्वास्थ्य प्रणाली और समाज, दोनों से ही भ्रांतियों और भेदभाव को दूर किया जाए। श्रीकृष्ण यह काम बखूबी कर रहे हैं। वह मरीज और उनके परिवार के सदस्यों को टीबी के बारे में पूरी जानकारी देते हैं और यह भी बताते हैं कि नियमित रूप से दवा खाने से टीबी पूरी तरह से ठीक हो जाती है। इसके अच्छे परिणाम भी आए हैं। प्रभावित परिवार के लोग भी अब अपनी जांच कराने के लिए आगे आने लगे हैं।
यूं लें निक्षय पोषण योजना का लाभ
मिश्रिख सीएचसी की सीनियर ट्रीटमेंट सुपरवाइजर साधना पुष्कर ने बताया कि निक्षय पोषण योजना के तहत निक्षय पोषण पोर्टल पर पंजीकरण के बाद टीबी रोगियों को प्रतिमाह 500 रुपए पोषण भत्ता के रूप में दिए जाते हैं। यह धनराशि सीधे मरीजे के बैंक खाते में भेजी जाती है। जिससे कि मरीज पौष्टिक खानपान कर सके। इसके अलावा कोई भी स्वयंसेवी संस्था, औद्योगिक इकाई या संगठन, राजनीतिक दल या कोई व्यक्ति टीबी के मरीज को गोद ले सकता है।
52 वर्ष की उम्र में टीबी से स्वस्थ हुए, अब दूसरों को कर रहे जागरूक
Read Time5 Minute, 34 Second