कौन थी लिली थॉमस और क्या है वो केस? जिसकी वजह से तत्काल प्रभाव से खत्म हो जाती है संसद सदस्यता

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Mar 24, 2023
3 मार्च को राहुल गांधी को “मोदी” उपनाम के बारे में उनकी टिप्पणी पर 2019 के मानहानि मामले में सूरत की एक अदालत ने दोषी ठहराया और दो साल की जेल की सजा सुनाई। सजा ने एक विधायक के रूप में उनकी अयोग्यता की प्रक्रिया शुरू कर दी गई।

सूरत की एक अदालत द्वारा मानहानि के मामले में दोषी ठहराए जाने के एक दिन बाद कांग्रेस नेता राहुल गांधी को लोकसभा से अयोग्य घोषित कर दिया गया है। लोकसभा सचिवालय द्वारा जारी एक नोटिस में कहा गया है कि वह अपनी सजा के दिन 23 मार्च से सदन से अयोग्य हैं। राहुल गांधी को अब एक उच्च न्यायालय का रुख करना होगा और अपनी सजा पर स्टे लेकर आना होगा। 23 मार्च को राहुल गांधी को “मोदी” उपनाम के बारे में उनकी टिप्पणी पर 2019 के मानहानि मामले में सूरत की एक अदालत ने दोषी ठहराया और दो साल की जेल की सजा सुनाई। सजा ने एक विधायक के रूप में उनकी अयोग्यता की प्रक्रिया शुरू कर दी गई।
लोकसभा नोटिस में क्या कहा गया
राहुल गांधी की अयोग्यता के लिए अपने आदेश में, लोकसभा ने कहा कि कांग्रेस नेता अपनी सजा की तारीख, यानी 23 मार्च, 2023 से लोकसभा की सदस्यता से अयोग्य हैं। इसके अलावा, नोटिस में कहा गया है कि यह आदेश भारत के संविधान के अनुच्छेद 102 (1) (ई) के प्रावधानों के संदर्भ में जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 8 के साथ पढ़ा गया था।
लिली थॉमस केस बना नजीर
एक सीनियर वकील लिली थॉमस ने केंद्र सरकार के खिलाफ इतने मामले लड़े कि उनका उपनाम ही लिली थॉमस बनाम यूनियन ऑफ इंडिया पड़ गया था। लिली थॉमस का जन्म कोट्टयम में हुआ था। शुरुआती पढ़ाई के बाद मद्रास विश्वविद्यालय से एलएलएम की डिग्री हासिल की। इसके बाद उन्होंने अपनी प्रैक्टिस शुरू की। 1964 में वो सबसे पहले चर्चा में आई थीं, जब उन्होंने एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड एग्जाम का विरोध किया था और सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। थॉमस ने 2003 में जनप्रतिनिधित्व कानून 1952 को चुनौती दी थी। थॉमस लिली ने संविधान के सेक्शन 8(4) को असंवैधानिक दिए जाने का मामला उठाया था। इसी सेक्शन में ये प्रावधान किया गया था कि दोषी करार दिए जाने के बावजूद जनप्रतिनिधि की सदस्यता बनी रहेगी। यदि वो अदालत के फैसले को ऊपरी अदालत में चुनौती देते हैं और वहां से सजा पर रोक लगा दी जाती है तो। हालांकि कोर्ट की तरफ से उनकी याचिका स्वीकार नहीं की गई। उन्होंने फिर से याचिका दायर कर दिया। 9 साल बाद 2012 में तीसरे प्रयास में उनकी याचिका स्वीकार कर ली गई। 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में लिली थॉमस के पक्ष में फैसला सुनाया जिसके मुताबिक 2 साल या उससे ज्यादा सजा पाने वाले जनप्रतिनिधियों की सदस्यता तत्काल प्रभाव से समाप्त हो जाएगी।

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