बीके सिंह
– जिला महिला चिकित्सालय सहित सभी एफआरयू सीएचसी पर खुलेंगे एनीमिया मैनेजमेंट सेंटर
– सिखाईं जाएंगी एनीमिया से बचाव की बारीकियां
सीतापुर। गर्भावस्था के दौरान शरीर में खून की कमी यानि एनीमिया से बचाने की अनूठी पहल की जल्द ही शुरूआत होने वाली है। इसके तहत गर्भवती को अब खून बढ़ाने की बारीकियां बताईं जाएगीं, ताकि मातृ एवं शिशु मृत्यु दर में कमी लाई जा सके। इसको लेकर स्वास्थ्य विभाग जिला महिला चिकित्सालय सहित जिले की छह प्रथम संदर्भन इकाई (एफआरयू) पर एनीमिया मैनेजमेंट सेंटर खाेलने जा रहा है।
एसीएमओ डॉ. आरएन गिरी का कहना है कि अपर्याप्त खानपान, आंतों में कृमि, माहवारी के दौरान अधिक रक्तस्राव, बार-बार गर्भधारण से महिलाओं के शरीर में आयरन की कमी हो जाती है। गर्भस्थ शिशु को पोषण के लिए आयरन की आवश्यकता होती है, जिसे वह मां के शरीर से ही प्राप्त करता है। ऐसे में गर्भवती के शरीर में आयरन की कमी के साथ ही खून की कमी उसे एनीमिया का मरीज बना देती है। एनीमिया की कमी प्रसव के दौरान जच्चा और बच्चा की मृत्यु की संभावना को बढ़ा देती है। इस तरह की मृत्यु को रोकने और सुरक्षित प्रसव कराने के लिए स्वास्थ्य विभाग ने जिले की एफआरयू सीएचसी सिधौली पर एनीमिया मैनेजमेंट सेंटर शुरू कर दिया है। मिश्रिख, महोली, महमूदाबाद, बिसवां और लहरपुर एफआरयू सीएचसी सहित जिला महिला चिकित्सालय पर एनीमिया मैनेजमेंट सेंटर खाेलने की तैयारियां शुरू कर दी गयी हैं। इस सेंटर के खुलने के बाद यहां पर तैनात स्टाफ नर्स-काउंसलर गर्भवती को बुलाकर खून की कमी को दूर करने के लिए काउंसलिंग करेंगे।
क्या कहते हैं आंकड़े
जिला महिला चिकित्सालय सहित एफआरयू सीएचसी पर दिसंबर में आयोजित किए गए प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान दिवस पर 710 गर्भवती और उनके गर्भस्थ शिशु के स्वास्थ्य की जांच की गई। इस दौरान 74 गर्भवती हाई रिस्क प्रेगनेंसी की श्रेणी में पाई गईं। वर्ष 2019-21 में हुए राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस-5) के आंकड़ों के अनुसार जिले में 15 से 49 साल की आयु वर्ग की 57.8 प्रतिशत गर्भवती एनीमिया की शिकार हैं। बात अगर 15 से 19 साल की आयु वर्ग की करें तो 61.2 प्रतिशत किशोरियां खून की कमी से जूझ रहीं हैं। इसी तरह से 15-49 साल की आयु वर्ग की कुल प्रतिशत महिलाएं खून की कमी से जूझ रही हैं।
एनीमिया को लेकर आई सजगता
जिला मातृ स्वास्थ्य परामर्शदाता उपेंद्र सिंह यादव का कहना है कि चार सालों की बात करें तो एनीमिया (खून की कमी) की गंभीरता को भी महिलाओं ने अच्छी तरह से समझा है। एनएफएचएस-5 के अनुसार प्रसव के दौरान एनीमिया को लेकर उन्हें किसी प्रकार की परेशानी न हो इसके चलते 18 फीसद महिलाओं ने कम से कम 100 दिन और 9.6 प्रतिशत महिलाओं ने कम से कम 180 दिनों तक आयरन फोलिक एसिड का प्रयोग किया, जबकि वर्ष 2015-16 में यह आंकड़ा क्रमश: 5.1 और 1.5 प्रतिशत ही था।
क्या कहती हैं सीएमओ
जिले की 53.4 प्रतिशत महिलाएं साक्षर हैं। 20.8 प्रतिशत बाल विवाह होते हैं, ऐसे में किशोरियां गर्भवती हो जाती हैं। खानपान और गर्भधारण की समुचित जानकारी न होने के कारण महिलाएं एनीमिया की शिकार हो जाती हैं। ऐसे में शासन के निर्देश पर खुलने वाले एनीमिया मैनेजमेंट सेंटर इस तरह की गर्भवती और किशोरियों के लिए वरदान साबित होंगे।
– डॉ. मधु गैरोला, सीएमओ