राज्यपाल के कारण बताओ नोटिस पर जवाब देने के लिए कुलपतियों को अधिक समय मिला

RAJNITIK BULLET
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Nov 04, 2022
नोटिस में कुलपतियों से पूछा गया है कि उन्हें उनके पद पर क्यों बने रहने देना चाहिए, जबकि उच्चतम न्यायालय के हालिया फैसले के मुताबिक उनकी नियुक्तियां अवैध हैं। राज्यपाल की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता जाजू बाबू ने कहा कि न्यायमूर्ति देवान रामचंद्रन ने कारण बताओ नोटिस पर रोक लगाए बिना ही उन्हें अपनी आपत्तियां दाखिल करने के लिए समय दे दिया।

केरल उच्च न्यायालय ने बृहस्पतिवार को राज्यपाल आरिफ मोहम्मद की ओर से जारी कारण बताओ नोटिस पर कुलपतियों के जवाब देने की अवधि को बढ़ाकर सात नवंबर कर दिया है। नोटिस में कुलपतियों से पूछा गया है कि उन्हें उनके पद पर क्यों बने रहने देना चाहिए, जबकि उच्चतम न्यायालय के हालिया फैसले के मुताबिक उनकी नियुक्तियां अवैध हैं। राज्यपाल की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता जाजू बाबू ने कहा कि न्यायमूर्ति देवान रामचंद्रन ने कारण बताओ नोटिस पर रोक लगाए बिना ही उन्हें अपनी आपत्तियां दाखिल करने के लिए समय दे दिया।

अदालत ने कुलपतियों की याचिका को सूचीबद्ध कर लिया है जिस पर आठ नवंबर को सुनवाई होगी। याचिका में राज्यपाल की ओर से भेजे गये नोटिस को अवैध होने का दावा किया गया है। इसके पहले सुबह राज्यपाल ने नयी दिल्ली में संवाददाताओं से बातचीत में कहा कि राजभवन ने कुलपतियों को सूचित किया है कि उनके जवाब देने की अवधि और व्यक्तिगत सुनवाई के अनुरोध को सात नवंबर तक विस्तारित कर दिया गया है।

विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति के रूप में खान ने 11 विश्वविद्यालयों के कुलपतियों को कारण बताओ नोटिस जारी किया है जिसमें उन्हें जवाब देने के लिए तीन-चार नवंबर तक का समय दिया गया था। राजभवन के सूत्रों ने बताया कि अब तक केवल केरल विश्वविद्यालय, केरल मत्स्य विश्वविद्यालय और महासागर अध्ययन (केयूएफओएस) के कुलपतियों का जवाब मिला है। उच्चतम न्यायालय ने 21 अक्टूबर को एपीजे अब्दुल कलाम प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के कुलपति की नियुक्ति को रद्द कर दिया था।

शीर्ष अदालत ने कहा था कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के अनुसार राज्य द्वारा गठित खोज समिति को अभियांत्रिकी विज्ञान के क्षेत्र के कम से कम तीन उपयुक्त लोगों के पैनल की सिफारिश राज्यपाल से करनी चाहिए थी, लेकिन केवल एक ही नाम भेजा गया था। इसी फैसले के आलोक में खान ने उन कुलपतियों से इस्तीफा देने की अपील की थी, जिनके अकेले नाम की सिफारिश कुलपति पद के लिए की गई है। इसके अलावा उन कुलपतियों से भी इस्तीफा मांगा गया जिनके नाम का चयन उस समिति द्वारा किया गया था जिनमें राज्य के प्रमुख सचिव सदस्य होते हैं। इन दोनों ही स्थितियों में कुलपतियों के चयन को राज्यपाल ने यूजीसी के नियमों का उल्लंघन बताया था।

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