उत्तर प्रदेश वक्फ सर्वे, वक्फ संपतियों को लेकर योगी सरकार की मंशा पर सवाल

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(शकील अहमद)
लखनऊ। अल्पसंख्यक मुस्लिम समाज जिसकी आबादी प्रदेश में करीब 19-20 प्रतिशत है, को आशंका है कि सरकार की नीयत वक्फ संपतियों को लेकर साफ नहीं है। उत्तर प्रदेश में मदरसा सर्वे का विरोध अभी थमा भी नहीं था कि योगी आदित्यनाथ सरकार ने वक्फ संपतियों के सर्वे की घोषणा कर नया विवाद पैदा कर दिया है। इन दोनों सर्वे को लेकर मुस्लिम समाज में आशंका है कि क्या सरकार अल्पसंख्यक समाज के संवैधानिक अधिकारों संक्षिप्त करना और उनकी संपतियों पर कब्जा करना चाहती हैं? भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) सरकार द्वारा वक्फ संपतियों के सर्वे की घोषणा के बाद से ही मुस्लिम समुदाय ने इसका विरोध शुरू कर दिया। अल्पसंख्यक मुस्लिम समाज जिसकी आबादी प्रदेश में करीब 19-20 प्रतिशत है, को आशंका है कि सरकार की नीयत वक्फ संपतियों को लेकर साफ नहीं है। “वक्फ” के विरुद्ध अभियान इस आशंका का एक बड़ा कारण यह भी है कि पिछले कुछ समय से दक्षिणपंथी समूह सोशल मीडिया पर “वक्फ” के विरुद्ध अभियान चला रहे थे। इस अभियान में लगातार केंद्र की सरकार नरेंद्र मोदी सरकार से मांग की जा रही है कि “वक्फ एक्ट 1995” को खत्म किया जाये। इसके अलवा दावा किया जा रहा है कि भारतीय सशस्त्र सेनाओं और भारतीय रेलवे के बाद सब से ज्यादा संपत्ति वक्फ बोर्ड के पास है। हिन्दू ट्रस्टों की जाँच क्यों नहीं ? मुस्लिम समाज का आरोप है कि योगी सरकार एक तरफा करवाई कर रही है। केवल मुस्लिम समुदाय से सम्बंधित संस्थानों का सर्वे किया जा रहा है। अगर राज्य सरकार भ्रष्टाचार खत्म करने को लेकर गंभीर है, तो मंदिरों, मठ और धर्मशालाओं के ट्रस्टों की जाँच क्यों नहीं हो रही है? सरकार का आदेश के अनुसार वक्फ संपतियों के सर्वे के लिए योगी प्रदेश सरकार ने “वक्फ” से जुड़ा 33 साल पुराना, 07 अप्रैल 1989 का आदेश रद्द कर दिया है। यह आदेश तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने जारी किया था। योगी सरकार 07 अप्रैल 1989 के बाद वक्फ सम्पत्ति के रूप में दर्ज सभी मामलों का पुन- र्परीक्षण भी करवाएगी। बता दें कि एक आदेश जारी करते हुए तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने कहा था कि यदि सामान्य संपत्ति बंजर, भीटा, ऊसर आदि भूमि का इस्तेमाल वक्फ के रूप में किया जा रहा हो तो उसे वक्फ संपत्ति के रूप में ही दर्ज कर दिया जाए और बाद में उसका सीमांकन किया जाए। अब अल्पसंख्यक कल्याण एवं वक्फ अनुभाग के उप सचिव शकील अहमद सिद्दीकी ने सभी मंडलायुक्तों व जिलाधिकारियों को पत्र भेजकर इस तरह के सभी भूखंडों की सूचना एक माह में मांगी है। वक्फ एक्ट देश की स्वतंत्रा के बाद 1954 वक्फ की संपत्ति और उसके रखरखाव के लिए वक्फ एक्ट -1954 बना था। बाद में 1995 में इसमें कई बदलाव किए गए। इसके बाद 2013- 14 में इस एक्ट में कुछ और संशोधन किए गए। क्या है। वक्फ यानी धर्मार्थ अर्पित वस्तु या संपत्ति। वक्फ कोई भी चल या अचल संपत्ति हो सकती है, जिसे कोई भी मुसलमान व्यक्ति द्दार्मिक कार्यों के लिए जो दान करके जाता है। इस दान की हुई संपत्ति की कोई भी मालिक नहीं होता है। दान की हुई इस संपत्ति का मालिक अल्लाह (ईश्वर) को माना जाता है। वक्फ का संचालन लेकिन, वक्फ को संचालित करने के लिए कुछ संस्थान बनाए गए है। वक्फ की संपत्ति का संचालन करने के लिए स्थानीय और राज्य स्तर पर वक्फ बोर्ड बनते हैं। यह बोर्ड की वक्फ संपत्ति का ध्यान रखते हैं। संपत्तियों के रखरखाव, उनसे आने वाली आय आदि का ध्यान रखा जाता है। सेंट्रल वक्फ काउं सिल राज्यों के वक्फ बोर्ड को दिशानिर्देश देने का काम करती है। उत्तर प्रदेश में वक्फ बता दें कि उत्तर प्रदेश और बिहार में अलग-अलग शिया और सुन्नी वक्फ बोर्ड हैं। उत्तर प्रदेश में सुन्नी वक्फ बोर्ड में करीब 123341 वक्फ संपत्तिया और शिया वक्फ बोर्ड के पास 6186 संपत्तियों का रिकार्ड है। इसमें मस्जिद, इमामबाड़ा, इमाम चैक, दर गाह, कर्बला, कब्रिस्तान, मजार/जियारत और मदर- सा आदि शामिल हैं। उल्ले- खनीय है कि वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद और मथुरा की शाही मस्जिद भी वक्फ में शामिल हैं। इसके अलावा बाबरी मस्जिद भी सुन्नी वक्फ बोर्ड में दर्ज थी। केवल अधिकरण उपयोग नहीं शिया वक्फ बोर्ड के पूर्व सदस्य हुसैन अफसर ने कहा कि 33 साल पुराने 1989 के दिए गए आदेश को रद्द किए जाने के बाद सरकार भी वक्फ की जमीनों का उपयोग नहीं कर सकती है। अफसर ने बताया कि सरकार केवल उन जमीनों को अधिकृत कर सकती है। सपा ने किया विरोध समाजवादी पार्टी के प्रमुख और प्रदेश के मुख्यमंत्री ने अखिलेश यादव ने कहा कि वह साफ तौर पर मदरसा सर्वे और वक्फ सर्वे का विरोद्द करते हैं। अखिलेश यादव का साफ कहना है कि हम सर्वे के खिलाफ हैं, सर्वे नहीं होना चाहिए। सरकार को केवल “हिंदू-मुस्लिम” करना है। वहीं मिर्जापुर में एक मस्जिद के मुतवल्ली (प्रभारी) मोहम्मद सलीम कहते हैं कि यह वक्फ ऐक्ट 1995 को खत्म करने तरफ सरकार का पहला कदम है। मोहम्मद सलीम कहते हैं कि अगर मौजूदा सरकार ने 1989 का आदेश रद्द किया है, तो फिर अब वक्फ की जमीनों से भी सरकारी कब्जे भी खाली होना चाहिए है। वह कहते केवल लखनऊ में कई सरकारी कार्यालय वक्फ की जमीन पर हैं। साम्प्रदायिकता को बढ़ावा हैदराबाद के संसद असदुद्दीन ओवैसी का कहना है इस से साम्प्रदायिकता को बढ़ावा मिलेगा। बीजेपी राजनीतिक लाभ उठाने के लिए सर्वे करना चाहती है। असदुद्दीन ओवैसी मानते हैं कि भगवा पार्टी गांव-गांव में यह संदेश देगी की उसने मुस्लिमों की संपतियां का अद्दिकृत कर लिया। यह छोटी आबादियों में मुसलमानों का जीवन मुश्किल कर देगा। आल इंडिया मजलिस-ए- इत्तेहा दुल मुस्लिमीन का कहना है की सच्चाई यह है कि मुसलमानों को परेशान किया जा रहा है। पार्टी के नेता सैयद आसिम वकार ने कहा कि यदि मोदी सरकार को सर्वे करवाना है तो सभी मंदिर, मठ और अन्य धार्मिक स्थलों के भी सर्वे कराए जाएं। इंडो इस्लामिक कल्चरल फाउंडेशन के सचिव अतहर हुसैन कहते हैं कि सरकार को जो भी करना है उस से पहले मुस्लिम समाज को विश्वास में लेना चहिए है। सरकारों और मुस्लिम समाज के बीच संवाद की कमी है जिस से गलत- फहमियों का जन्म हो रहा है।
ज्ञानवापी भी वक्फ वरिष्ठ पत्रकार हिसाम सिद्दीकी कहते हैं कि सरकार की नजर गाँव की वक्फ जमीनों पर है। वह कहते हैं मंशा वक्फ का विकास या भ्रष्टाचार खत्म करना नहीं बल्कि मुस्लिम समाज को परेशान करना है। हिसाम सिद्दीकी आगे कहते हैं कि बाबरी मस्जिद भी वक्फ थी लेकिन चली गई। ऐसे ही सर्वे के नाम पर वक्फ बोर्ड दबाव बनाकर ज्ञानवापी मस्जिद और मथुरा की शाही मस्जिद को भी हासिल करने का प्रयास किया जा सकता है। क्या कहते हैं वक्फ बोर्ड न्यूज क्लिक से बात करते हुए शिया वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष अली जैदी और सुन्नी वक्फ बोर्ड के चेयरमैन जुफर फारूकी, दोनों ने बीजेपी सरकार के निर्णय का स्वागत किया है। इन दोनों का मानना है, की सर्वे से वक्फ के कागजात एक बार फिर से अपडेट हो जायेगे। प्रदेश में दोनो वक्फ बोर्ड हैं, सुन्नी सेन्ट्रल वक्फ बोर्ड और शिया वक्फ बोर्ड दोनों पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगते रहे हैं। कुल मिलकर अभी सरकार और मुस्लिम समाज में तनाव का माहौल खत्म होता नजर नहीं आ रहा है रहा है। अब इसमें राजनीति भी शुरू हो गई है। ऐसा लगता है यह मुद्दे आने वाले आम चुनाव 2024 में भी छाए रहेंगे। विपक्ष का आरोप है कि सत्तारुण बीजेपी “द्द्रुवीकरण” की राजनीति कर रही है और सत्तापक्ष का कहना है विपक्ष तुष्टीकरण की राजनीति करता है।

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