बेटियों को कब नहीं मिलता पिता की संपत्ति में हक, इस बारे में क्या हैं प्रावधान, जानें इस कानून जुड़ी सारी बातें

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  • फरवरी 2, 2022  

हिंदुओं के मामले में हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम लागू हो जाता है और मुसलमानों के मामले में मुस्लिम पर्सनल लॉ लागू हो जाता है। हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 में बेटे और बेटी को बराबरी का अधिकार दिया जाता है।

बेटियों का पिता की संपत्ति में हिस्से को लेकर हमेशा विवाद रहा है। समाज में अलग-अलग तरह की भ्रांतियां हैं जो बेटियों के पिता की संपत्ति में हिस्से को लेकर चलती रहती हैं। कहीं पर लोग कहते हैं बेटी को बेटे से कम अधिकार मिला है, कहीं पर कहा जाता है कि बेटी को कुछ अधिकार नहीं मिले हैं और कहीं पर लोग कहते हैं कि बेटी को बेटों के समान अधिकार मिले हैं। इन भ्रांतियों की सबसे बड़ी वजह ये है कि लोगों को कानून की जानकारी नहीं है।

वर्तमान भारत में पिता की संपत्ति में बेटियों के हिस्से को लेकर कहीं भी भ्रम की स्थिति नहीं है, आज बेटियों को पिता की संपत्ति में कितना अधिकार है और कब बेटियों को पिता की संपत्ति में हिस्सा नहीं मिलता इन सबके बारे में हमारे कानून में पूरी स्पष्टता है। इसमें संपत्ति के विभाजन को लेकर अलग-अलग कानून है। यह कानून सभी धर्मों के कानून है। इन कानूनों में कुछ कानून संसद के द्वारा भी बनाए गए हैं जैसे भारत में हिंदुओं के लिए हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 बनाया गया है। मुसलमानों के लिए उनका पर्सनल लॉ है, इसी तरह से ईसाईयों के लिए भी कानून है।

इन्हीं कानूनों के साथ कुछ ऐसे भी कानून है जो सभी धर्मों पर समान रूप से लागू होते हैं जैसे भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम 1925। यह कानून सभी भारतीयों पर पूर्ण रुप से लागू होता है। कोर्ट भी इस अधिनियम की सहायता कई मामलों में लेती है। इन सभी कानूनों से किसी भी व्यक्ति के संपत्ति का अधिकार तय होता है।

भारत में मोटे तौर पर देखा जाए तो संपत्ति दो प्रकार की होती है। एक संपत्ति वह होती है जो व्यक्ति ने खुद अर्जित की है, दूसरी संपत्ति होती है जो व्यक्ति की पैतृक संपत्ति है। आपको बता दें पैतृक संपत्ति उस संपत्ति को कहा जाता है जो पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही है। स्वयं द्वारा अर्जित संपत्ति ऐसी संपत्ति होती है जो व्यक्ति ने खुद से अर्जित की है। सारी कहानी पैतृक संपत्ति और स्वयं द्वारा अर्जित संपत्ति के बीच ही चलती है। व्यक्ति जब स्वयं कोई संपत्ति अर्जित करता है तो उस व्यक्ति को यह अधिकार होता है कि वह अपनी संपत्ति के संबंध में फैसला ले सके।

इस बात का उल्लेख भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम, संपत्ति अंतरण अधिनियम में मिलता है। किसी भी व्यक्ति को उसकी संपत्ति के संबंध में कोई भी फैसला लेने की पूरी आजादी है। समाज में अक्सर यह भ्रम भी  दिखता है कि बच्चों को ऐसा लगता है कि वह पिता को संपत्ति बेचने से रोक सकते हैं जबकि यह बिल्कुल गलत है। पिता अपनी खुद अर्जित संपत्ति को कहीं भी बेच सकता है। कुछ संपत्ति ऐसी होती है जिन पर बच्चों का कोई हक नहीं होता।

जब पिता स्वयं द्वारा अर्जित की गई संपत्ति को दान में देनें का फैसला ले लेता है या उसे बेच देता है। तब कोई बेटा या बेटी अपनी पिता की संपत्ति के बारे में किसी तरह का क्लेम नहीं कर सकते। दूसरी स्थिति में जब व्यक्ति स्वयं की कोई वसीयत तैयार कर ले और जिसके नाम चाहे उसके नाम वह वसियत कर दे, ऐसी स्थिति में बच्चे वसीयत को कोर्ट में चैलेंज तो कर सकते हैं, पर अगर कोर्ट में यह पाया गया कि वसीयत वैध है तब बच्चे मुकदमा हार जाते हैं।

बेटियों को कब मिलता है पिता की संपत्ति में हक

पिता द्वारा अर्जित की गई संपत्ति में बेटी या बेटों को उसके मरने के बाद ही अधिकार मिलता है। लेकिन अगर पिता कोई फैसला लिए बगैर मर जाता है तो बेटों और बेटियों को समान अधिकार मिल जाता है। हिंदुओं के मामले में हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम लागू हो जाता है और मुसलमानों के मामले में मुस्लिम पर्सनल लॉ लागू हो जाता है। हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 में बेटे और बेटी को बराबरी का अधिकार दिया जाता है। किसी भी संपत्ति में जितना अधिकार बेटे का होता है उतना ही बेटी का भी होता है।

कई बार लोग कह देते हैं कि बेटी की शादी हो गई और उसे उसके पति की संपत्ति में अधिकार मिल गया है। ऐसा कोई भी नहीं बोल सकता। बेटी अपने पिता की अर्जित की गई संपत्ति में अधिकार प्राप्त सकती है, अगर उसके पिता की संपत्ति के बारे में व्यवस्था किए बिना ही मृत्यु हो जाती है। कोर्ट में जब यह साबित हो जाता है कि संपत्ति उस व्यक्ति की स्वयं की कमाई की थी तब बेटी को भी संपत्ति में बराबर का अधिकार दिया जाता है। ये संपत्ति बेटियों को उत्तराधिकार में मिली संपत्ति कही जाती है। बेटी उस संपत्ति के बारे में जैसा चाहे वैसा फैसला ले सकती है।

मुसलमानों के मामले में थोड़ा अलग हालात हैं, यहां पर बेटी को बेटे से थोड़ा कम अधिकार है। पर आजकल इस अवधारणा को कोर्ट बिल्कुल नहीं मान रही है और मुस्लिम पर्सनल लॉ के मामले में भी भारतीय कानून उत्तराधिकार अधिनियम को लागू करके बेटी को बराबरी का अधिकार दिलवाया जाता है।

पैतृक संपत्तियों में बेटियों का अधिकार

पैतृक संपत्ति के मामले में स्थिति थोड़ा सा अलग है। यह संपत्ति पूर्वजों से चली आ रही संपत्ति होती है। बेटियों का विवाह होने के बाद अगर कोई रिश्ता बेटी की तरफ से है तब उसको अधिकार कम मिलते हैं। और एक समय में पैतृक संपत्ति के मामले में बेटियों की ओर से रिश्ते के अधिकार तो पैतृक संपत्ति के मामले में  लगभग खत्म ही हो जाते हैं। पैतृक संपत्ति के मामले में  2 पीढ़ी आते आते बेटियों के अधिकार लगभग लगभग कम हो जाते हैं। लेकिन हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 2005 में कुछ बदलाव किए गए और एक बेटी को भी पैतृक संपत्ति में बेटे के बराबर अधिकार मिलता है।

कब नहीं मिलता बेटियों को उत्तराधिकार

कुछ हालात ऐसे होते हैं जब बेटियों को संपत्ति में उत्तराधिकार नहीं मिलता है। मान लीजिए कोई बेटी अपने उत्तराधिकार में मिले हक का त्याग कर देती है तो उसे संपत्ति में किसी भी तरह का अधिकार नहीं मिलता। संपत्ति भले ही उसके पिता की खुद की अर्जित की हुई संपत्ति क्यों ना हो। अगर बेटी ने अपने हिस्से का त्याग कर दिया है और किसी और के पक्ष में रिलीज डीड लिख दी है, उसके बाद उस रिलीज डीड को रजिस्टर्ड भी करवा लिया गया है। तब बेटी किसी भी अधिकार के लिए क्लेम नहीं कर सकती है।

अब बाप बेटों के नाम लिख दे वसीयत

जब पिता स्वयं द्वारा अर्जित की गई संपत्ति की वसीयत को बेटों के नाम लिख दे  और बेटियों को कोई हक ना दे इस वसीयत को रजिस्टर्ड करवा लिया जाए, ऐसी स्थिति में बाप के मरने के बाद बेटी को संपत्ति में किसी भी प्रकार का कोई अधिकार नहीं मिलता है। फिर बेटियां कोर्ट जाकर भी इस संबंध में अधिकार की मांग नहीं कर सकती हैं। क्योंकि वह पिता की स्वयं की अर्जित की गई संपत्ति थी और उन्हें उस संपत्ति से बेदखल कर दिया गया।

यहां यह समझ लेना भी जरूरी है कि एक पिता अपनी कमाई हुई संपत्ति की वसीयत को बेटों के पक्ष में लिख सकता है। लेकिन पैतृक संपत्ति के संबंध में वह कोई भी वसीयत किसी के नाम नहीं कर सकता। क्योंकि यह संपत्ति उसके पूर्वजों की संपत्ति है और इस संपत्ति में उसकी बेटी का भी अधिकार है। यहां वह अपनी बेटी को उस अधिकार से वंचित नहीं कर सकता।

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